सोमवार, जनवरी 04, 2010

त्रिवेणी

चांदनी है जब तक ज़मीन पर कोई चाँद को देखता तक नहीं,
जो आजाती है अमावस बीच में, चाँद की कमी खलने लगती है.

रिश्तों ने भी आज कल कुछ यूँही घटना बढ़ना सीख लिया है.

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रवि इत्मिनान से आता है आज कल,
चाँद 14 घंटे मशक्कत करता है.

गरीब के ठिठुरने के दिन आ गए हैं.

--नीरज

11 टिप्‍पणियां:

  1. नीर जी आपकी ये रचना तो मेरी समझ से परे है...।
    शेर बहुत अच्छा है..इसे ठंड से क्यूँ जोङ दिया जनाब....

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  2. @शबनम
    त्रिवेणी वो होती है जिस में की आप दो चीज़ों की बात करें और तीसरी भी मिल जाए तीसरे मिसरे में. जैसे की गंगा, जमुना में मिलती हुई सरस्वती.

    सूरज यानी की रवि ठण्ड में कम समय के लिए निकलता है और ज्यादा तर अँधेरा सा ही रहता है, आप और हम तो घर में रजाई या heater लेकर बैठे रहते हैं पर ठण्ड का कहर तो गरीब को झेलना पड़ता है.

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  3. बहुत उम्दा त्रिवेणियाँ...


    ’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

    -त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

    नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

    कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

    -सादर,
    समीर लाल ’समीर’

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  4. @ परमजीत जी - शुक्रिया.... :)

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  5. बहुत खूबसूरत त्रिवेणियाँ हैं ....बहुत खूब

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  6. त्रिवेणी अब कुछ बयाँ करती है .............चंद टूटे शिशो के दर्द को ....और बांध लगा लेती है बहते रक्त पलाश को ......भीगा है जिसमे एक उलज़ा हुआ धर्म

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आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.