सोमवार, फ़रवरी 12, 2018

अकेलापन


कभी कभी  कितना अकेलापन हो जाता है,
खुद ही बोलता है और खुद को सुनता है।
दिल रोज़ की तरह खुद धड़कता है,
और खुद की धड़कन आप सुनता है।
कभी कभी  कितना अकेलापन हो जाता है।

आईने के सामने खड़ा खुद को निहारता है,
अपनी ही मुस्कान से मुस्करा कर मिलता है।
बाएँ हाथ से दाएँ को थाम लेता है,
मुश्किलों में खुद को हिम्मत दिलाता है।
कभी कभी  कितना अकेलापन हो जाता है।

कभी जब आँख से आँसू बह जाता है,
पलकों से पौंछ के ढांढस बंधाता है।
कभी कभी  कितना अकेलापन हो जाता है,
-- नीर