शनिवार, सितंबर 12, 2009
फकीर - एक गीत
ज़िन्दगी का मेला चलता,
सालों साल बराबर चलता.
खोज रहीं हैं मंजिल अपनी,
दर दर भटक रहीं साँसे.
बाँटता जा खुशियों को जग में,
निकल जायेंगी सब फांसें.
ज़िन्दगी का मेला चलता,
सालों साल बराबर चलता.
स्वर्ग नर्क किसने है देखा,
शब्-ओ-सहर है सब ने जाना.
मौत की चिंता छोड़ ओ प्राणी,
गाता जा खुशियों का गाना.
ज़िन्दगी का मेला चलता,
सालों साल बराबर चलता.
अन्तकाल तक यूँही फिरता,
कहता रहता चलता चलता.
हाथ लिए इकतारा फकीरा,
ज्ञान की माला जपता चलता...
ज़िन्दगी का मेला चलता,
सालों साल बराबर चलता.
--नीरज
शुक्रवार, सितंबर 11, 2009
प्यार की गर्मी
रात सिकुडी है
साँसे ठहरी सी हैं
कोहरा घनेरा
सुन्न जिस्म है मेरा.
पोटली देखी है
फुटपाथ के किनारे,
गरीब का परिवार
प्यार की गर्मी
ले रहा है.
अमीर हैं की प्यार
की नरमी भूल गया.
गर्मी मिटाने के लिए
AC में सो रहा है
--नीरज
साँसे ठहरी सी हैं
कोहरा घनेरा
सुन्न जिस्म है मेरा.
पोटली देखी है
फुटपाथ के किनारे,
गरीब का परिवार
प्यार की गर्मी
ले रहा है.
अमीर हैं की प्यार
की नरमी भूल गया.
गर्मी मिटाने के लिए
AC में सो रहा है
--नीरज
गुरुवार, सितंबर 10, 2009
** हाइकु **
महताब है
मोहब्बत मेरी.
दूर मुझसे.
***************
ज़मीन गीली,
अजीब सी खामोशी....
बिखरे मोती.
--नीरज
मोहब्बत मेरी.
दूर मुझसे.
***************
ज़मीन गीली,
अजीब सी खामोशी....
बिखरे मोती.
--नीरज
बुधवार, सितंबर 09, 2009
मैं हिन्दुस्तानी.
फिर दंगे हो रहे हैं,
हर जगह लड़ मर रहे हैं.
minority का majority से मुकाबला है
जिस के कम सिर काटेंगे कल उसकी सरकार बनेगी
हारने वाले की फिर 5 साल बाद इस सरकार को ज़रुरत पड़ेगी.
हर जगह दुकाने जल रहीं हैं,
लाशें नंगी तड़प रहीं हैं,
बच्चों, औरतों तक को नहीं छोडा,
हर तरफ जिंदगियां बिफर रही हैं.
हल चलता किसान आज Rs.500 के खातिर
तलवार भाँज रहा है,
घोर कलयुग आ गया है फसल की जगह सर काट रहा है,
कसूर उस बिचारे का भी नहीं है,
सियासत प्यास है ऐसी जिसकी तृप्ति लहू के बसकी भी बात नहीं है.
न जाने कब ये मुल्क जागेगा
कब "इकबाल" की बात को जानेगा
कब अपने आपको कश्मीरी, मद्रासी,
मराठी के ऊपर 'हिन्दुस्तानी' मानेगा
जिससे पूछो वो येही बतलाता है
मैं मराठी, मैं गुजरती, मैं राजस्थानी
कितने हैं आप में जो कहते हैं
"मैं हिन्दुस्तानी".
जब बनाने वाले ने
तुझे बनाने में भेद भाव नहीं किया.
तो हे प्राणी तूने उस के नाम मात्र पे
भेद भाव क्यों किया?
तेरे इष्ट ने कहाँ पढाया
तुझे ये पाठ ज़रा बता,
खून की होली खेल,
घर रोशन करना कहाँ से सीखा मुझे बता?
--नीरज
हर जगह लड़ मर रहे हैं.
minority का majority से मुकाबला है
जिस के कम सिर काटेंगे कल उसकी सरकार बनेगी
हारने वाले की फिर 5 साल बाद इस सरकार को ज़रुरत पड़ेगी.
हर जगह दुकाने जल रहीं हैं,
लाशें नंगी तड़प रहीं हैं,
बच्चों, औरतों तक को नहीं छोडा,
हर तरफ जिंदगियां बिफर रही हैं.
हल चलता किसान आज Rs.500 के खातिर
तलवार भाँज रहा है,
घोर कलयुग आ गया है फसल की जगह सर काट रहा है,
कसूर उस बिचारे का भी नहीं है,
सियासत प्यास है ऐसी जिसकी तृप्ति लहू के बसकी भी बात नहीं है.
न जाने कब ये मुल्क जागेगा
कब "इकबाल" की बात को जानेगा
कब अपने आपको कश्मीरी, मद्रासी,
मराठी के ऊपर 'हिन्दुस्तानी' मानेगा
जिससे पूछो वो येही बतलाता है
मैं मराठी, मैं गुजरती, मैं राजस्थानी
कितने हैं आप में जो कहते हैं
"मैं हिन्दुस्तानी".
जब बनाने वाले ने
तुझे बनाने में भेद भाव नहीं किया.
तो हे प्राणी तूने उस के नाम मात्र पे
भेद भाव क्यों किया?
तेरे इष्ट ने कहाँ पढाया
तुझे ये पाठ ज़रा बता,
खून की होली खेल,
घर रोशन करना कहाँ से सीखा मुझे बता?
--नीरज
मंगलवार, सितंबर 08, 2009
कन्या भ्रूण हत्या
माँ आज मैं 4 महीने की हो गयी,
बस 5 महीने और फिर मैं तेरी हो जाउंगी।
भैया के काँधे पे खेलूंगी, पापा की ऊँगली पकडूंगी,
जब तू दफ्तर जायेगी, घर साफ़ मैं कर लूँगी।
भैया की चिंता न करना उसका खिलौना भी मैं बन लूँगी,
बस कुछ दिन और फिर मैं तेरी हो जाउंगी।
मन लगा कर पढूंगी, तेरा नाम रोशन करुँगी,
ये पापा क्या बोले माँ? मैं कल तुझ से कट जाउंगी?
पापा का क्या है माँ, दर्द तो तुझ को, मुझ को सहना है,
मेरा क्या होगा माँ मैं तेरी कैसे हो पाउंगी?
हटवाना था जब मुझको तो देवी से क्यों माँगा था?
रो रो रात गुज़रीं तूने तब देवी ने मुझ को भेजा था।
हट कर ले माँ वरना मैं कल तुझ से कट जाउंगी।
अडिग हो जा माँ वरना मैं तेरी कैसे हो पाउंगी?
--नीरज
रविवार, सितंबर 06, 2009
मुझे जीने दो....
आज में 25 साल का हूँ,
अपनी खुशिओं से बे-परवाह हूँ.
पिछली साल तक सब अच्छा था,
मैं अपने दोस्तों के दिल का हिस्सा था.
अब वो ही दोस्त जो घर पर आया करते थे,
बीते साल से उनके रस्ते भी बदल गए थे.
जब गली से गुज़रता था तो कोई
तिरछी निगाह कर देखता न था.
अब तो बस निगाहों से ही बात होती है,
सब को डर लगता है कहीं मुँह न खुल जाए.
अब तो उस दोस्त ने भी नाता तोड़ दिया जिसको
खून देने अस्पताल गया था और ऐवज़ में HIV साथ ले आया था,
तब नहीं पता था की खून के साथ कई रिश्ते,
कई दोस्त उस बिस्तर पे छोड़ आया था.
रात भर करवट बदल-बदल कर रोती है,
माँ है....झूठी हंसी तक समझती है.
रोज़ कोई न कोई मेरे हाल पे अफ़सोस जताने चला आता है.
30 मिनट में मेरी माँ को मौत की परछाई दिखा चला जाता है.
न जाने कब तक इन आंसूओं को छिपाकर पिऊंगा,
न जाने कब तक इस अँधेरी धूप में जिऊंगा,
जाना नहीं चाहता कहीं पर क्या करूँ,
जब मुझे ही सब छोड़ चले तब मैं यहाँ रहकर क्या करूँगा.
अपनी आशाओं, उमंगों को अपने साथ ले जाऊँगा,
इस संसार को बस अपनी याद दे जाऊँगा,
कुछ रोकर याद करेंगे कुछ हंसके,
लुप्त होती इंसानियत का बीज बो जाऊँगा.
एक गुजारिश है तुम पढ़े लिखों से,
किसी AIDS patient को अछूत न समझना,
वो अभी तक जिंदा है
उसकी भावनाओं को मुर्दा न समझना......
--नीरज
शनिवार, सितंबर 05, 2009
दो बहनें
काश के एक रोज़ यूँ
ही तू मुझे मिली होती,
रख लेता तुझे संभाल के
सहेज के, मेह्फूस कर के.
तू न आई अपनी सौतेली
बहन को भेज दिया.
वो जब-जब आई मैंने
दरवाज़ा नहीं खोला,
सदा तेरा ही इंतज़ार किया.
और एक रोज़ खुद ही
उसको बुला लिया.
मुझे क्या पता था की
उसके आने पर ही तू आएगी,
तेरी पायजेब की आवाज़
कानों में जब गूंझी तब तक
देर हो चुकी थी.
तेरी सौतेली बहन
मुझ पे हावी हो चुकी थी.
हर रिस्ता कतरा कलाई से
खून का किस्मत को रो रहा था.
तू चौखट के उस पार थी,
मैं चौखट के इस पार सो रहा था....
सोचा था तेरी सौतेली बहन "मौत"
के साथ तू भी मिल जायेगी,
पर ए "ख़ुशी" तू उस दिन भी
चौखट के पार ही रह गयी,
और मैं चौखट के इस पार ही सो गया....
--नीरज
ही तू मुझे मिली होती,
रख लेता तुझे संभाल के
सहेज के, मेह्फूस कर के.
तू न आई अपनी सौतेली
बहन को भेज दिया.
वो जब-जब आई मैंने
दरवाज़ा नहीं खोला,
सदा तेरा ही इंतज़ार किया.
और एक रोज़ खुद ही
उसको बुला लिया.
मुझे क्या पता था की
उसके आने पर ही तू आएगी,
तेरी पायजेब की आवाज़
कानों में जब गूंझी तब तक
देर हो चुकी थी.
तेरी सौतेली बहन
मुझ पे हावी हो चुकी थी.
हर रिस्ता कतरा कलाई से
खून का किस्मत को रो रहा था.
तू चौखट के उस पार थी,
मैं चौखट के इस पार सो रहा था....
सोचा था तेरी सौतेली बहन "मौत"
के साथ तू भी मिल जायेगी,
पर ए "ख़ुशी" तू उस दिन भी
चौखट के पार ही रह गयी,
और मैं चौखट के इस पार ही सो गया....
--नीरज
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