रविवार, अप्रैल 10, 2022

भीड़ कभी मुझे खींच न पाई

भीड़ कभी मुझे खींच न पाई,

और अकेलापन कभी छोड़ न पाया।

मेरा हमनफस सदा मैं ही रहा,

मेरा हमनवा कोई कभी बन न पाया।


जाम तो बहुत भरे साकी ने यूं तो,

हलक के नीचे कभी उडेल न पाया,

मैं को में में झोंकता रहा,

मैकशी में से निभा न पाया।


--नीर