भीड़ कभी मुझे खींच न पाई,
और अकेलापन कभी छोड़ न पाया।
मेरा हमनफस सदा मैं ही रहा,
मेरा हमनवा कोई कभी बन न पाया।
जाम तो बहुत भरे साकी ने यूं तो,
हलक के नीचे कभी उडेल न पाया,
मैं को में में झोंकता रहा,
मैकशी में से निभा न पाया।
--नीर