भीड़ कभी मुझे खींच न पाई,
और अकेलापन कभी छोड़ न पाया।
मेरा हमनफस सदा मैं ही रहा,
मेरा हमनवा कोई कभी बन न पाया।
जाम तो बहुत भरे साकी ने यूं तो,
हलक के नीचे कभी उडेल न पाया,
मैं को में में झोंकता रहा,
मैकशी में से निभा न पाया।
--नीर
मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !
आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !
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