न रात हूँ, न दिन हूँ,
न हूँ मैं भगवान कोई.
आकाश नहीं, पर्वत नहीं,
ना ही हूँ झरना कोई.
खामोशी की दस्तक नहीं,
न अँधेरे का फलसफा कोई,
न झील में तैरती पतवार हूँ,
न अम्बर का फ़रिश्ता कोई.
हाड मॉस का देह मेरा,
छोटा सा है ह्रदय मेरा.
रात मेरी भी हैं काली,
दिन होता रोशन मेरा.
अश्रु की पैदा वार भी है,
ग़मों की खरपतवार भी है.
अंधेरों से मैं भी हूँ डरता,
चांदनी की खिलखिलाहट भी है.
पूछते हो क्यों ये मुझसे,
कौन हूँ मैं कौन हूँ मैं?
तुम बताओ अब ये मुझको,
क्या तुमसे भी कुछ भिन्न हूँ मैं?
-- नीरज
शुक्रवार, मई 29, 2009
शुक्रवार, मई 22, 2009
काश होती लक्ष्मणरेखा
भरपाया हूँ खींच तान से
अब नहीं झिलते तुम मुझको
लाज करो कुछ लाज करो
राष्ट्रीय संपत्ति न तुम
यूँ बरबाद करो.
काश के होती लक्ष्मणरेखा,
या आती कोई Hit, mortein ऐसी
हर सड़क, गली,
कूचे पे लगवाता
ये मुल्क रोज़ 10 से न सही
1 से तो निजात पा ही जाता.
रोज़ कुछ नया इजाद
करना फिर भी पड़ता
क्योंकि लोग कहते हैं
कॉक्रोच और मच्छर
जल्दी अभ्यस्त हो जाते हैं.
--नीरज
अब नहीं झिलते तुम मुझको
लाज करो कुछ लाज करो
राष्ट्रीय संपत्ति न तुम
यूँ बरबाद करो.
काश के होती लक्ष्मणरेखा,
या आती कोई Hit, mortein ऐसी
हर सड़क, गली,
कूचे पे लगवाता
ये मुल्क रोज़ 10 से न सही
1 से तो निजात पा ही जाता.
रोज़ कुछ नया इजाद
करना फिर भी पड़ता
क्योंकि लोग कहते हैं
कॉक्रोच और मच्छर
जल्दी अभ्यस्त हो जाते हैं.
--नीरज
गुरुवार, मई 21, 2009
...नहीं पहचान पाता
दिन के उजाले की ललक
का दीवाना इंसान
स्याह रात के जुगनू
नहीं पहचान पाता.
खो देता है उस क्षण को
और चार दीवारी में दिन
नहीं पहचान पाता.
सीप में छुपे मोती खोजता है
आँखों के सागर में छुपे
मोती नहीं पहचान पाता.
खोखली हंसी पे जीता है
अपने ही सीने में उमड़ता
दर्द नहीं पहचान पाता.
आकाश से टूटते सितारे देखता है
दिल से जुदा होते रिश्ते
नहीं पहचान पाता.
यही जीव उस शक्ति ने उपजा था
जो अब अपने आप को
नहीं पहचान पाता.
--नीरज
का दीवाना इंसान
स्याह रात के जुगनू
नहीं पहचान पाता.
खो देता है उस क्षण को
और चार दीवारी में दिन
नहीं पहचान पाता.
सीप में छुपे मोती खोजता है
आँखों के सागर में छुपे
मोती नहीं पहचान पाता.
खोखली हंसी पे जीता है
अपने ही सीने में उमड़ता
दर्द नहीं पहचान पाता.
आकाश से टूटते सितारे देखता है
दिल से जुदा होते रिश्ते
नहीं पहचान पाता.
यही जीव उस शक्ति ने उपजा था
जो अब अपने आप को
नहीं पहचान पाता.
--नीरज
बुधवार, मई 20, 2009
सिन्दूर

लाल साड़ी के पल्लू पे काश दाग चड़ा होता,
हल्दी, सिन्दूर न सही कीचड से ही जड़ा होता.
जोड़े में सहेज, रख लेती उस दाग को,
काश अम्मा-बाउजी ने वो दाग माथे मड़ा होता.
नीली छत्री के तले रोज़ दिल भिगाती हूँ,
दाग होता तो दिल पे सिन्दूर चड़ा होता.
कर्त्तव्य की आड़ में क्यों धोखा दिया,
देते न तो आज जीवन बिन बैसाखी खड़ा होता.
तुम्हारी ये मासूम कली फूल भी बनती,
गर सिन्दूर नशे में मसलने पे न अड़ा होता.
दिल को हर गली-कूचे ढूंढती फिरती हूँ,
काश के दिल इसी शहर में कहीं पड़ा होता.
--नीरज
मंगलवार, मई 19, 2009
अनमने भाव
अनमने भाव इस दिल में आज कल आने लगे हैं,
दिल को हर घडी झिंझोर ने, डराने लगे हैं.
बस दिए में दिल लगता है, न जाने क्या है मेल मेरा,
ज़िन्दगी धुआं हो रही है, वक़्त दिखता तेल मेरा.
सैमल सा हल्का फुल्का कभी इधर कभी उधर,
विचरण करता ह्रदय मेरा कभी इधर कभी उधर.
कंकर दिखता पहाड़ मुझे, कण टीला सा दिखता है,
दूजा खुश ज्यादा मुझसे, हास्य करीला सा दिखता है.
अश्रु साथ नहीं देते अब दिल तनहा ही रोता है,
साया रूठ गया है अब मन तनहा ही सोता है.
--नीरज
*करीला - जिस पर की गाँव में मटके को फोड़ कर, नीचे के गोलाई वाले भाग को चूल्हे पे औंधा रख कर रोटियां सेकी जाती हैं. सीधी आंच लगने के कारण वो समय के साथ काला भी हो जाता है.
दिल को हर घडी झिंझोर ने, डराने लगे हैं.
बस दिए में दिल लगता है, न जाने क्या है मेल मेरा,
ज़िन्दगी धुआं हो रही है, वक़्त दिखता तेल मेरा.
सैमल सा हल्का फुल्का कभी इधर कभी उधर,
विचरण करता ह्रदय मेरा कभी इधर कभी उधर.
कंकर दिखता पहाड़ मुझे, कण टीला सा दिखता है,
दूजा खुश ज्यादा मुझसे, हास्य करीला सा दिखता है.
अश्रु साथ नहीं देते अब दिल तनहा ही रोता है,
साया रूठ गया है अब मन तनहा ही सोता है.
--नीरज
*करीला - जिस पर की गाँव में मटके को फोड़ कर, नीचे के गोलाई वाले भाग को चूल्हे पे औंधा रख कर रोटियां सेकी जाती हैं. सीधी आंच लगने के कारण वो समय के साथ काला भी हो जाता है.
लोग पूछते हैं...
लिखता हूँ तेरा नाम फिर मिटा देता हूँ,
लोग पूछते हैं तू कुछ लिखता क्यूँ नहीं?
मोहब्बत से बढ़कर क्या है ज़िन्दगी में,
लोग पूछते हैं तू कुछ करता क्यूँ नहीं?
तेरे ख़त के पुर्जे हैं दिल में दफन,
लोग पूछते हैं तू कुछ पढता क्यूँ नहीं?
तूने अंदाज़-ए-गुफ्तगू निगाहों से सिखाया,
लोग पूछते हैं नज़रें उठता क्यूँ नहीं?
आशिक फ़कीर से क्यों होते हैं अक्सर,
लोग पूछते हैं तू मांगता क्यूँ नहीं?
मैं को "मै" में डूबा गयी थी,
लोग पूछते हैं पैमाना थमता क्यूँ नहीं?
--नीरज
लोग पूछते हैं तू कुछ लिखता क्यूँ नहीं?
मोहब्बत से बढ़कर क्या है ज़िन्दगी में,
लोग पूछते हैं तू कुछ करता क्यूँ नहीं?
तेरे ख़त के पुर्जे हैं दिल में दफन,
लोग पूछते हैं तू कुछ पढता क्यूँ नहीं?
तूने अंदाज़-ए-गुफ्तगू निगाहों से सिखाया,
लोग पूछते हैं नज़रें उठता क्यूँ नहीं?
आशिक फ़कीर से क्यों होते हैं अक्सर,
लोग पूछते हैं तू मांगता क्यूँ नहीं?
मैं को "मै" में डूबा गयी थी,
लोग पूछते हैं पैमाना थमता क्यूँ नहीं?
--नीरज
सोमवार, मई 04, 2009
इम्तहान
जाने क्यों इम्तहान होता है,
साल भर मस्ती और अंत में
ये जन-जाल होता है.
दिन रात बस सिलवटों का डेरा,
आँखों के नीचे अँधेरा होता है.
दुनिया घूमने जाती है, ख़ुशी मनाती है
और ये दिल, मायूस किताबों में होता है.
एक सवाल बचपन से जारी है,
इम्तहान से पहले क्यों पेट को होती बीमारी है.
घर वाले सब हंसते हैं,
क्यों चुना इस विषय विशेष को
हम ये सोच सोच कर रोते हैं.
कल इम्तहान है और आज Tension से,
keyboard से कवितायेँ झड़ रहीं हैं.
न जाने कल इम्तहान में क्या झडेंगे,
पता चला वहां भी कवितायें झड़ रहीं हैं.
किताबों ने भी जवाब दे दिया है,
कहतीं हैं बेटा तुझे दवा की नहीं
है ज़रुरत अब तो दुआ ही तेरी,
आखरी उम्मीद रह गयी है.....
--नीरज
साल भर मस्ती और अंत में
ये जन-जाल होता है.
दिन रात बस सिलवटों का डेरा,
आँखों के नीचे अँधेरा होता है.
दुनिया घूमने जाती है, ख़ुशी मनाती है
और ये दिल, मायूस किताबों में होता है.
एक सवाल बचपन से जारी है,
इम्तहान से पहले क्यों पेट को होती बीमारी है.
घर वाले सब हंसते हैं,
क्यों चुना इस विषय विशेष को
हम ये सोच सोच कर रोते हैं.
कल इम्तहान है और आज Tension से,
keyboard से कवितायेँ झड़ रहीं हैं.
न जाने कल इम्तहान में क्या झडेंगे,
पता चला वहां भी कवितायें झड़ रहीं हैं.
किताबों ने भी जवाब दे दिया है,
कहतीं हैं बेटा तुझे दवा की नहीं
है ज़रुरत अब तो दुआ ही तेरी,
आखरी उम्मीद रह गयी है.....
--नीरज
मौत
मौत तू आएगी,
न जाने किस लिबास में.
दामन में गिरेगी या,
उडा ले चलेगी.
सालों करवटें दिलवाएगी,
या आघोष में भर ले चलेगी.
दबे पाँव आएगी या,
रोज़ एहसास के साथ आएगी.
जानता हूँ मौत तू एक रोज़ आएगी,
झोंके के साथ मेरी रूह ले जायेगी.
--नीरज
न जाने किस लिबास में.
दामन में गिरेगी या,
उडा ले चलेगी.
सालों करवटें दिलवाएगी,
या आघोष में भर ले चलेगी.
दबे पाँव आएगी या,
रोज़ एहसास के साथ आएगी.
जानता हूँ मौत तू एक रोज़ आएगी,
झोंके के साथ मेरी रूह ले जायेगी.
--नीरज
Yaad hai mujh ko
Chandni ne us din jab chupke se tujhe chua tha,
tu kaise sharma ke simat gayi thee yaad hai mujh ko.
office mein jab kaam nahin tha bahar khali baithe the,
oss ki boondon ko mujh pe chitakna yaad hai mujh ko.
tere gesuon ki wo narm narm thandak bhari chaaon,
mere udas chehre pe fira dena yaad hai mujh ko.
meri khushi mein uchalna, mujhe yun aaghosh mein bharna,
ashkon se meri shirt bhigona yaad hai mujh ko.
Shopping ke liye subhe se Sarojini Nagar mein ghoomna,
Choti Diwali ka wo din ab bhi yaad hai mujh ko.
chaat ke liye wo zid tumhari, pal bhar ko mera rooth jaana,
dhamaake ka wo shor ab bhi yaad hai mujh ko.
--Neeraj
tu kaise sharma ke simat gayi thee yaad hai mujh ko.
office mein jab kaam nahin tha bahar khali baithe the,
oss ki boondon ko mujh pe chitakna yaad hai mujh ko.
tere gesuon ki wo narm narm thandak bhari chaaon,
mere udas chehre pe fira dena yaad hai mujh ko.
meri khushi mein uchalna, mujhe yun aaghosh mein bharna,
ashkon se meri shirt bhigona yaad hai mujh ko.
Shopping ke liye subhe se Sarojini Nagar mein ghoomna,
Choti Diwali ka wo din ab bhi yaad hai mujh ko.
chaat ke liye wo zid tumhari, pal bhar ko mera rooth jaana,
dhamaake ka wo shor ab bhi yaad hai mujh ko.
--Neeraj
Section 49-O
साँसों में तूफ़ान लिए,
हाथों में पतवार लिए।
चलता है राह मुसाफिर,
आँखों में सैलाब लिए।
युग बीते सब वादे टूटे,
नैनों से बस हंजू टूटे।
ऊँगली पे निशान लगा,
आशा का अब साथ न टूटे।
संविधान को छुपाये रखा,
49-O बचा के रखा।
जनता अब है जाग रही,
अपना हक पहचान रही।
http://en.wikipedia.org/wiki/49-O
हंजू - आंसू
--नीरज
हाथों में पतवार लिए।
चलता है राह मुसाफिर,
आँखों में सैलाब लिए।
युग बीते सब वादे टूटे,
नैनों से बस हंजू टूटे।
ऊँगली पे निशान लगा,
आशा का अब साथ न टूटे।
संविधान को छुपाये रखा,
49-O बचा के रखा।
जनता अब है जाग रही,
अपना हक पहचान रही।
http://en.wikipedia.org/wiki/49-O
हंजू - आंसू
--नीरज
प्रतिबिम्ब
हरिद्वार गया था कुछ रोज़ पहले,
लोगों को पावन डुबकी लेते देखा,
बस एक ही ख्याल आया दिल में,
मनुष्य कितना विचित्र है,
मरने से डरता है पर फिर भी,
खुद की अस्थियाँ बहने से पहले,
गंगा में प्रतिबिम्ब ज़रूर देखता है।
--नीरज
लोगों को पावन डुबकी लेते देखा,
बस एक ही ख्याल आया दिल में,
मनुष्य कितना विचित्र है,
मरने से डरता है पर फिर भी,
खुद की अस्थियाँ बहने से पहले,
गंगा में प्रतिबिम्ब ज़रूर देखता है।
--नीरज
सदस्यता लें
संदेश (Atom)