शुक्रवार, मई 22, 2009

काश होती लक्ष्मणरेखा

भरपाया हूँ खींच तान से
अब नहीं झिलते तुम मुझको
लाज करो कुछ लाज करो
राष्ट्रीय संपत्ति न तुम
यूँ बरबाद करो.

काश के होती लक्ष्मणरेखा,
या आती कोई Hit, mortein ऐसी
हर सड़क, गली,
कूचे पे लगवाता
ये मुल्क रोज़ 10 से न सही
1 से तो निजात पा ही जाता.

रोज़ कुछ नया इजाद
करना फिर भी पड़ता
क्योंकि लोग कहते हैं
कॉक्रोच और मच्छर
जल्दी अभ्यस्त हो जाते हैं.

--नीरज

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