सोमवार, जून 21, 2010
फासले
चाहतें हैं दरमियाँ, फिर भी दूरी न जाने क्यों है,
आहटें हैं दरमियाँ, फिर भी ख़ामोशी न जाने क्यों है?
आयतें लिखी हैं दिलों पे दोनों के एक ही,
भाषा खामोश ये दिल की न जाने क्यों है?
एक ही शहर में थामे खड़े हैं हाथ कबसे,
फिर भी मीलों की ये दूरी न जाने क्यों है?
सिमट आते हैं कभी रास्ते दरमियाँ अपने,
चाहत छिपाना तुझे लाज़मी न जाने क्यों है?
जुल्फों के ख़म मेरी नज़रों से सुलझाती है,
हथेली पे आइना फिर भी न जाने क्यों है?
--नीरज
ख़म = curls
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उमदा प्रस्तुति। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंNirmala Ji - Bahut bahut dhanyavaad aane ke liye aur pasand karne ke liye. Aate rahiyega. :)
जवाब देंहटाएंbehad khoobsooraat gajal hui hai ....oyee tum apne plog ki temp chage karke deho baht sunder sunder temps hai new vaali ..or easy bhi hain abhi pehle se :)
जवाब देंहटाएंVandana - Thanx yaar. Us mein explore karne ko bahut kuch hai to saari setting dekhni padegi, thoda extra time milega to try karunga. :)
जवाब देंहटाएंoye tune qafiya nibha liya be...mubarq hoi... :)oho copy p[et nahi ho raha...doosra wala sher khamoshi jitna hi mast hai ..
जवाब देंहटाएंSwapnil - Bada wala thanx re pushpaaaaaa..... :P :D
जवाब देंहटाएंkhubsurat, aur upar to mathematics correction ka certificate bhi mil gaya hai :)
जवाब देंहटाएंwah wah...wah wah... i knw this is for me... :D
जवाब देंहटाएं@Avi - Thanx... :)
जवाब देंहटाएं@Mousumi - Shukriya shukriya....yes it was written for u. :)
जवाब देंहटाएंहमनें तो उनको नज़्म में ही देख लिया
जवाब देंहटाएंफिर भी आपको
फासले न जाने क्यों लगते हैं