बुधवार, सितंबर 11, 2019

365 days valentine



आज कुछ बीती गलिओं से गुज़री,
तो आँखें कुछ नम सी हो गयीं।
हवाएँ जो बस यूँहीं बह रही थीं,
एक नज़्म सी हो गयीं। 

10 KM पैदल घर आते थे,
किराया बचा कर मेरे लिए जलेबी जो लाते थे तुम।
अदृश्य तोंद को पिचकाने का कह कर,
मुझे दिन-दहाड़े बरगलाते थे तुम। 

कैसे भूलूँ वो दिवाली की रातें,
कांख से कई बार सिली कमीज़ को भी नया बता जाते थे,
हज़ारों में भी चमकूं, तो नई साड़ी ले आते थे तुम। 

वो सुनहरी चप्पलें याद हैं?
जो मेरे जन्मदिन पे तुम ने दिलायीं थी?
मुझे क्या मालूम नहीं,
तुमने उनकी कीमत अपने तलवों के छालों से चुकाई थी.

तुम्हे क्या लगता रहा ता-उम्र की मुझे इल्म नहीं?
इल्म था, कि सदा तुम्हारी खुशी मेरी और मेरी तुम्हारी रही। 
तब तो बस हर पल हम दोनों को अपना साथ था,
अब पता चला की वो तो अपना 365 days valentine था। 

--नीर 

2 टिप्‍पणियां:

आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.