रविवार, सितंबर 05, 2010

सीली ज़िन्दगी


गुज़र रहे हैं पल ख़ामोशी से,
लम्हा लम्हा सीला है.
खामोशी की आहट है बस
हर करवट दिल भीगा है.

तंग गलिओं के चोराहों पे
रोज़ नाचती है ज़िन्दगी,
हर कच्चे घर के आँगन में
सूरज अब तक भीगा है

जितने करवट ले लो चाहे,
ये नींद कभी न टूटेगी.
रात की दो रोटी का स्वाद
यहाँ तो अब तक फीका है.

--नीरज