कुछ पन्ने मेरी दराज़ से....
शुक्रवार, अप्रैल 21, 2017
बेपरवाह
वो यूंही बस छूके चली जाती है,
बालों को सहला कर, चुपके से गुज़र जाती है।
क्या थामूँ हाथ अब उस बेपरवाह का,
हवा ही तो है, बस सेहला के गुज़र जाती है।
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नीर
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