बुधवार, मई 23, 2012

गुमनाम





कई ऐसे लोग हैं जिनकी वजह से हमारे देश को एक नई पहचान मिली पर.......एवज़ में उन्हें सिर्फ गुमनामी के काले साए मिले.......
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तरंग उठी फिर
भोर भई,
सप्तक नाच
मद-मस्त हुई.

कुछ चेह्के,
कुछ महके,
लगने लगे,
तबले पे ठेके.

कुछ नाम मिले,
गुमनाम मिले.
जो मिले कहीं,
वो खाख मिले.

स्याह रात खिली,
पहचान मिली,
सब भूल गए,
वो पहचान मिली.

लाचारी की गलिओं में,
बहरों की इस बस्ती में.
डूब गए अरमान सभी,
बिन पतवार की कश्ती में.

--नीरज

सोमवार, मई 14, 2012

सफहा

 

वक़्त ने अपनी कुछ गिरहें खोलीं हैं 
या कोई ख्वाब ओस बन के उभरा है.
फैली कुछ आढी-तिरछी लकीरें हैं
या कोई ख्वाब सफ्हे पे उभरा है.

--नीरज

शनिवार, मई 12, 2012

बादल



नीले आकाश के नीचे कुछ बादल अब बरसे हैं,
कच्चे घर की दीवारों पे कुछ रेले जा पसरे हैं.

सूरज जा अब चाँद उगा है, वो भी कुछ गीला-गीला है.
ताप रहा है आग भी लम्हा, वो भी कुछ सीला-सीला है.

- नीरज