वक़्त ने अपनी कुछ गिरहें खोलीं हैं या कोई ख्वाब ओस बन के उभराहै.
फैली कुछ आढी-तिरछी लकीरें हैं
या कोई ख्वाब सफ्हे पे उभरा है.
--नीरज
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आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
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