मंगलवार, अगस्त 10, 2010

लाल भारत



खूब उड़ा है लाल गुलाल,
रंग हुआ है देश का लाल.
मन मानी भाई करी है सबने,
कौन बना है देश का लाल??

लालगढ़ के लाल हैं लाल,
बरफ भी हुई है फिर से लाल.
परवाह है भाई तुमको किसकी,
लगा के घूमो बत्ती लाल.

डुबा-डुबा के डुबा दिया है,
खेल भी कर दिये तुमने लाल.
फिर भी शर्म से भैया तोरे,
नहीं हैं बिलकुल लाल ये गाल.

बढ़ा बढ़ा के बढ़ा दिया है,
महंगाई ने किया बवाल.
इच्छा है भाई सबकी अब ये,
तुम पे ठोकें जम के ताल.


जाने कैसे सुनोगे तुम ये,
कैसे होगी पतली खाल??

--नीरज

गुरुवार, अगस्त 05, 2010

लिबास



तू आएगी न जाने किस लिबास में
दामन में गिरेगी या मुझे ले उड़ेगी,
न दाएरे होंगे न बंदिशें कोई किसी की,
सुकून को मेरे दामन में सौंप जायेगी.
छुउंगा आसमां, हवा को काटूँगा मैं,
सूरज की किरणों से मुझे पावन करेगी.

तू किसी रोज़ यूँही चली आएगी या
रोज़ एक अहसास के साथ आएगी.
कभी फुर्सत मिले तो बताना मुझे,
मौत तू किस लिबास में आएगी.

--नीरज

मंगलवार, अगस्त 03, 2010

लहर



ये नदी और इस के ये दो किनारे,
सदियों से दो भाई जुदा हों, लगता है.
लहरें रोज़ आती हैं दोनों से मिलने,
दोनों को छूती हैं और चली जाती हैं.
कौन जाने ये कहीं बीच में ही खो जाती हैं या
एक भाई का सन्देश दुसरे को पहुंचती हैं.

कई दिन गुज़रे हैं तोहफा नहीं लायी लहर,
न सन्देश लायी है कोई उस पार से.
पिछली बार कुछ चिकने पत्थर आये थे,
तो कुछ यहाँ से भी भिजवाए थे जवाब में.
आज कल माहोल शांत है, यहाँ का भी वहां का भी,
लगता है लहर ने आज कल सीधा बहना सीख लिया है.

ये नदी और इस के ये दो किनारे,
सदियों से दो भाई जुदा हों, लगता है.

--नीरज