मंगलवार, अगस्त 03, 2010

लहर



ये नदी और इस के ये दो किनारे,
सदियों से दो भाई जुदा हों, लगता है.
लहरें रोज़ आती हैं दोनों से मिलने,
दोनों को छूती हैं और चली जाती हैं.
कौन जाने ये कहीं बीच में ही खो जाती हैं या
एक भाई का सन्देश दुसरे को पहुंचती हैं.

कई दिन गुज़रे हैं तोहफा नहीं लायी लहर,
न सन्देश लायी है कोई उस पार से.
पिछली बार कुछ चिकने पत्थर आये थे,
तो कुछ यहाँ से भी भिजवाए थे जवाब में.
आज कल माहोल शांत है, यहाँ का भी वहां का भी,
लगता है लहर ने आज कल सीधा बहना सीख लिया है.

ये नदी और इस के ये दो किनारे,
सदियों से दो भाई जुदा हों, लगता है.

--नीरज

8 टिप्‍पणियां:

  1. @Sunil Ji - Bahut bahut shukriya aane aur sarah ne k liye. :)

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  2. sunder aur gahre bhaav liye rishto ki duri mahsoos karti acchhi abhivyakti.

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  3. @Anamika Di - Bahut bahut shukriya di, aap ko yahan dekh kar accha laga. :)

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  4. हमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
    कुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....

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  5. wah! bahut khoob likha hai, padh kar behad achchha laga

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  6. @Shivam ji, Sanjay ji, mai ji - Aap logon ka aane ka aur sarahne k liye bahut bahut shukriya. :)

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आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.