शनिवार, जून 16, 2012

आँखें मुंदीं हैं - कन्या भ्रूण हत्या - 3


बहते देखा है क्या तुमने मुझको?
माँ मेरी आँखें मुंदीं हैं.
घुटते देखा है क्या तुमने मुझको? 
माँ मेरी आँखें मुंदीं हैं.

गोदी में सोने की चाह थी मेरी, 
अम्बर को छूने की चाह थी मेरी.
छीना क्यूँ हक मेरा तुमने मुझसे,
काटा क्यों मुझको तुमने खुदसे.
माँ मेरी आँखें मुंदीं हैं.

ऊँगली थामे चलने की चाह थी मेरी,
डोली में जाने की चाह थी मेरी,
छीना क्यूँ हक मेरा तुमने मुझसे,
लूटा क्यों सजने का ख्वाब ये मुझसे. 
माँ मेरी आँखें मुंदीं हैं.

रोते देखा है क्या तुमने मुझको?
माँ मेरी आँखें मुंदीं हैं.
सोते देखा है क्या तुमने मुझको?
माँ मेरी आँखें मुंदीं हैं.

--नीरज