सोमवार, दिसंबर 12, 2011

झुर्रियां

 

रात के चेहरे पे कुछ झुर्रियां उभर आई हैं, 
जाने खुद उकरी हैं या अँधेरे ने चाँद का नकाब छीन लिया है. 

ज़री की चादर से सितारे भी छिटक गए हैं, 
जाने वो खुद बेनूर हुई है या फंदा दर फंदा उधेडा गया है. 

 --नीरज