कई ऐसे लोग हैं जिनकी वजह से हमारे देश को एक नई पहचान मिली पर.......एवज़ में उन्हें सिर्फ गुमनामी के काले साए मिले.......
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तरंग उठी फिर
भोर भई,
सप्तक नाच
मद-मस्त हुई.
कुछ चेह्के,
कुछ महके,
लगने लगे,
तबले पे ठेके.
कुछ नाम मिले,
गुमनाम मिले.
जो मिले कहीं,
वो खाख मिले.
स्याह रात खिली,
पहचान मिली,
सब भूल गए,
वो पहचान मिली.
लाचारी की गलिओं में,
बहरों की इस बस्ती में.
डूब गए अरमान सभी,
बिन पतवार की कश्ती में.
--नीरज
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