आज कुछ बीती गलिओं से गुज़री,
तो आँखें कुछ नम सी हो गयीं।
हवाएँ जो बस यूँहीं बह रही थीं,
एक नज़्म सी हो गयीं।
10 KM पैदल घर आते थे,
किराया बचा कर मेरे लिए जलेबी जो लाते थे तुम।
अदृश्य तोंद को पिचकाने का कह कर,
मुझे दिन-दहाड़े बरगलाते थे तुम।
कैसे भूलूँ वो दिवाली की रातें,
कांख से कई बार सिली कमीज़ को भी नया बता जाते थे,
हज़ारों में भी चमकूं, तो नई साड़ी ले आते थे तुम।
वो सुनहरी चप्पलें याद हैं?
जो मेरे जन्मदिन पे तुम ने दिलायीं थी?
मुझे क्या मालूम नहीं,
तुमने उनकी कीमत अपने तलवों के छालों से चुकाई थी.
तुम्हे क्या लगता रहा ता-उम्र की मुझे इल्म नहीं?
इल्म था, कि सदा तुम्हारी खुशी मेरी और मेरी तुम्हारी रही।
तब तो बस हर पल हम दोनों को अपना साथ था,
अब पता चला की वो तो अपना 365 days valentine था।
--नीर
क्या बात है ,प्रेम का सरल स्वरूप सबसे सुंदर होता है।
जवाब देंहटाएंHaan didi :)
हटाएं