रविवार, नवंबर 01, 2009

काश के चाँद मेरी शर्ट का बटन होता


काश के चाँद मेरी शर्ट का बटन होता,

मैं रो़ज़ उससे तोड़ता तू रोज़ उसे सीती.
यूँही सिलसिला सालों चलता,
ये अमावस यूँही इतनी लम्बी न हुई होती....

-- नीरज

6 टिप्‍पणियां:

  1. नीरज
    उठान अच्छी है
    नज़्म में कहने को अभी
    और बहुत कुछ
    बचा है कहने को

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  2. agar ek din vo seena bhool jati ya vo tumse naraj hokar silne se mana kar deti to ham sab to chandni ko hi taras gaye hote nahee? ..:-)

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  3. wow! gazab ka tashan ja raha hai aapka to........hamko to gulzaar ji nazar aaye.....lagta hai unko padhte hai aap :-)

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  4. आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया....:)

    जी प्रिय जी जब कभी समय मिलता है तो गुलज़ार साहब को पढता हूँ. :)

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आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.