पसर-पसर के चल रही है क्यों रात.
कितने करवट चल लिए,
न जाने कितने करवट बाकी हैं.
हर लम्हा टिक-टिक कर चाक की धुन पर गिरता है.
कितनी धुन हैं सुनलीं अब तक,
न जाने कितनी धुनें अभी बाकी हैं.
आढ़े-तिरछे रेले गीले हैं अब तक.
कितनी बूँदें बह गयीं,
न जाने कितनी अब भी बाकी हैं.
-- नीरज
बहुत ही खूबसूरत.... आनंद ही आ गया....आभार
जवाब देंहटाएंनीरज जी...क्या लिखते हैं आप...आपकी रचनाएँ दिल को छू लेतीं हैं.....
जवाब देंहटाएंBahut bahut shukriya Sanjay ji. Aate rahiye. :)
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachana hai...
जवाब देंहटाएंBahut bahut shukriya Reena Ji :)
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