मायने ज़िन्दगी के बदलने लगे हैं,
गुलशन में ख़ार अब लगने लगे हैं.
मुस्कुरा लेती थी ज़िन्दगी अक्सर यूँही,
उसे अब अमावस के साए डसने लगे हैं.
लाली शफ़क की जलाती है आसमां को,
स्याह रात के तारे उसे बुझाने लगे हैं.
वक़्त का चाक खाली घूमता रहा अब तक,
ज़िन्दगी को उसपे अब हम गड़ने लगे हैं.
बंजर ज़मीन पे आता न था कोई भी,
काली घटा के मेले अब लगने लगे हैं.
--नीरज
अद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, शब्दों से मन झंझावत से भर जाता है यही तो है कलम का जादू बधाई
................नीरज जी
Bahut bahut shukriya sanjay ji
जवाब देंहटाएंबहूत हि अच्छा लिखा है आपने...
जवाब देंहटाएंबहूत हि सुंदर रचना है...
अभी और भी पोस्ट देखना बाकी है समय निकाल कर
फिर से आयेंगे...