वक़्त की मेज़ पे कुछ ख़याल अदबुने ही छूट गए थे.
जान पड़ता है की मेरी नींद की चाबी हाथ लग गयी है उनके,
रह रह कर उन्होंने मेरे ख़्वाबों में आना सीख लिया है.
कुछ तो बारिश के पतंगों की तरह बिन बुलाये चले आते हैं,
ऐसा मालूम होता है की कोई सैलानी आया, रुका.....और चला गया.
कुछ मोर बन कर आते हैं, निशानी के तौर पर पंख छोड़ जाते हैं.
तुम जो आओ अगली बार तो मोर बनकर आना
तुम्हे स्याही में भिगो के कागज़ पे उकेर लूँगा.
--नीरज
lovely... again
जवाब देंहटाएंThanx.. :)
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद कुछ लिखा ...खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंarey ye Morpankhi waali kalam ......aur purane zamane ke dawaat to hame bhi dhoondh rahe hain...jaane kahan milegi ...waise likhe uma types hai :-)
जवाब देंहटाएं@sangeeta aunty - bahut bahut shukriya.
जवाब देंहटाएंPriya - thanx.. :)
जवाब देंहटाएंuma types kya hota hai??