ज़िन्दगी तू दिखाती है न जाने कितने रूप,
कितने रूप तू इंसान से बदलवाती है.
कह जाती है कभी दास्ताँ पल में,
कभी सालों ठहर के दास्ताँ बनाती है.
रूठता है जो कोई कभी तुझसे,
पल में उसे हंसा मना भी लेती है.
साए लाख देती है ज़िन्दगी में,
उजाले से फिर तू मिटा भी देती है.
--नीरज
जिदगी न जाने कितने रूप बदलती है..
जवाब देंहटाएंऔर हर रूप में हमें भी शामिल कर लेती है...
मन के भावो को बखूबी शब्द दिया है...
बहुत बेहतरीन....
:-)