शनिवार, सितंबर 15, 2012

ज़िन्दगी




ज़िन्दगी तू दिखाती है न जाने कितने रूप,
कितने रूप तू इंसान से बदलवाती है.
कह जाती है कभी दास्ताँ पल में,
कभी सालों ठहर के दास्ताँ बनाती है.
रूठता है जो कोई कभी तुझसे,
पल में उसे हंसा मना भी लेती है.
साए लाख देती है ज़िन्दगी में,
उजाले से फिर तू मिटा भी देती है.

--नीरज

1 टिप्पणी:

  1. जिदगी न जाने कितने रूप बदलती है..
    और हर रूप में हमें भी शामिल कर लेती है...
    मन के भावो को बखूबी शब्द दिया है...
    बहुत बेहतरीन....
    :-)

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