शनिवार, फ़रवरी 27, 2010
ए ज़िन्दगी मैं कैसे करूँ अदा शुक्रिया तेरा
ए ज़िन्दगी मैं कैसे करूँ अदा शुक्रिया तेरा?
उलझी हुई कई रातें तू यूँही सुलझा देती है.
उगते सपने कई तू हकीकत में ले आती है,
आसमान से तोड़ देती है सितारे अनगिनत ,
तोड़ के तू मेरी झोली में जड़ने चली आती है.
ए ज़िन्दगी मैं कैसे करूँ अदा शुक्रिया तेरा?
प्यार की पवन से मेरी जुल्फें सहलाती है.
रात भर उंघती आँखों में नींद दे जाती है,
देखा नहीं तुझे तोड़ते गुलशन से फूल कोई,
काँटों के सेज को भी पल में फूल बना देती है .
तु ही रुलाती है कभी, तू ही हंसा देती है.
ए ज़िन्दगी मैं कैसे करूँ अदा शुक्रिया तेरा?
--नीरज
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
bahut sunder rachna hai neerr ....:)
जवाब देंहटाएंThanx vandu... :)
जवाब देंहटाएंhello.....
जवाब देंहटाएंAnjali here...i read ur blog....kitna achha laga cant explain in words....wana b ur frnd?if u hv no problem
Hi Anjali,
जवाब देंहटाएंyou can contact me further on neer91@gmail.com