शनिवार, अप्रैल 10, 2010

बातें वो अनकही सी



बहुत बार कही,
मगर कई बातें बेजुबां सी
लबो तक आने को लफ्ज़ ढूंढती रही .
बिलखते से जज्बात की तरह
जहन में कौंधती रहीं.

तुमने देखा नहीं शायद,
मेरी पलकों के साहिल पे
उन्हें खामोश बैठे हुए.
छूकर जो गुजरी यादो की बदली,
आँखों को समंदर करती रही.

बातें वो अनकही सी
तड़पती मोंज कि तरह.
पलकों को मेरी भिगाती रही.

--नीरज
Thanx to Vandana too who helped me with this creation. :)

13 टिप्‍पणियां:

  1. एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

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  2. neer aur vandna...dono ne mil kar bahut hi pyari nazm likhi hai ...bahut achhe mere bachhon ...:P

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  3. बढ़िया अभिव्यक्ति!!

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  4. hmmm...walllaakammm :):

    abhi jyada sunder lag rahi hai padhne me ..:)

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आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.