शनिवार, जून 16, 2012

आँखें मुंदीं हैं - कन्या भ्रूण हत्या - 3


बहते देखा है क्या तुमने मुझको?
माँ मेरी आँखें मुंदीं हैं.
घुटते देखा है क्या तुमने मुझको? 
माँ मेरी आँखें मुंदीं हैं.

गोदी में सोने की चाह थी मेरी, 
अम्बर को छूने की चाह थी मेरी.
छीना क्यूँ हक मेरा तुमने मुझसे,
काटा क्यों मुझको तुमने खुदसे.
माँ मेरी आँखें मुंदीं हैं.

ऊँगली थामे चलने की चाह थी मेरी,
डोली में जाने की चाह थी मेरी,
छीना क्यूँ हक मेरा तुमने मुझसे,
लूटा क्यों सजने का ख्वाब ये मुझसे. 
माँ मेरी आँखें मुंदीं हैं.

रोते देखा है क्या तुमने मुझको?
माँ मेरी आँखें मुंदीं हैं.
सोते देखा है क्या तुमने मुझको?
माँ मेरी आँखें मुंदीं हैं.

--नीरज

11 टिप्‍पणियां:

  1. I dont want to spoil the beauty of your style by commenting anything here.... Best is what touches the heart, and that is what your creations do....

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  2. Thanks for reading it and commenting as well. You can comment here without any hesitation.

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  3. achchi lagi lekin aap isse bhi achcha likhte ho.....Padha hai aapko pahle bhi....Spark aur chahiye ....good going

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  4. @Priya - Bahut bahut shukriya sarahne ke liye. Muaafi chaahta hun ki pehle ki bhaanti is baar nahi likh paya, par koshish rahegi ki agli baar pehle se bhi behtar koi nazm likhun. :)

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  5. मन को छूते हुए भाव हैं.....

    अनु

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आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.