रविवार, फ़रवरी 22, 2009

अन्तिम हार

टप टप बूंदों की आवाज़ सुनाई देती है,
आंसू की हर बूँद लहू दिखाई देती है!
दायें हाथ में खंजर बाएँ पे धार दिखाई देती है,
टप टप बूंदों की आवाज़ सुनाई देती है....!

धीरे धीरे आती है बेहोशी सी, मद होशी सी,
ठंडक बढती जाती है, कोहरा छाता जाता है,
यादें आती जाती हैं, जीने की याद दिलाती जातीं हैं!
टप टप बूंदों की आवाज़ सुनाई देती है,
आंसू की हर बूँद लहू दिखाई देती है!

ठंडी अमावस की रात है, कुछ पल बस और हैं,
कठपुतली ये रूह अब न और है!
टप टप बूंदों की आवाजें अब न और है,
चीखों का विस्तार है, सन्नाटा अब न और है!

हर एक बूँद लहू की आंसू से चार हुई।
एक बुजदिल की ये आखरी हार हुई.....!!!!
-- नीरज

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