शनिवार, मार्च 21, 2009

कलयुग

आज रात एक अजीब सा द्रश्य देखा,
दो नंगे जिस्मों को आलिंगन कर बैठे देखा.

अमावस की रात तो नहीं थी न जाड़ा घनघोर था,
हजारों गाडियाँ रोशन थीं, धुएं से माहोल गर्म था.

आश्रम* की लाल बत्ती पे खडा था हरी होने के इंतज़ार में,
90 second बस यही सोचता रहा - ये नंगे जिस्म हैं किस फ़िराक में?

गरीबी के उन गर्म थपेडों में बारिश ने सिरहन भर दी,
नंगे जिस्म अब और लिपट गए, बारिश ने आँखें भर दीं.

10 second बचे थे कुल अब, accelerator की आवाज़ बढ़ी,
उन दो बच्चों की परछाई कुल दो फ़ुट तक बस और बढ़ी.

कलयुग में राम-लखन आज मैंने देखे,
लक्ष्मण को ठण्ड से बचाने को आतुर राम फुटपाथ पर देखे.

*आश्रम दिल्ली में एक जगह का नाम है

- - नीरज भार्गव

1 टिप्पणी:

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