रविवार, मार्च 22, 2009

चुनाव आ रहे हैं....

सालों साल लड़े जिस टुकड़े पर आज उसे बंजर किया,
रंगरलियाँ करने को पूरी रिश्वत का शंख-नाद किया।
वो लड़े मरे इस मात्रि भूमि पर, निछावर घर परिवार किया,
हमने सूक्ष्म उन्नति कर, बलिदान का उपहास किया,

चुनाव आने पर सड़कें आधी बनवाते हो,
और बाकी आधी अगले चुनाव आने पर बनवाते हो।
पांच साल में अपने घर भर लेते हो,
छटे साल से पांच गरीब गोद क्यों नहीं ले लेते हो?

कभी उन तंग गलिओं में बिफरती जिंदगियां देखना,
अपने बच्चों को मौत के हवाले करते मजबूर बाप से पूछना,
किस चिह्न पर मोहर लगायेगा उससे पूछना,
न हाथ न कमल दिखेगा उसको, रोटी तलाशती उसकी निगाहें देखना।

फिर चुनाव आ रहे हैं, तम्बू सज रहे हैं,
गरीबों के झोपडे में इस बार भी बम्बू सज रहे हैं।

- - नीरज

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.