शुक्रवार, जुलाई 17, 2009

निस्वार्थ

पेड़, नदी, पहाड़, झरने
बस यूँही विद्यमान हैं.
निस्वार्थ ही सब को
हर समय सुख देते हैं.
फ़र्ज़ अपने होने का बस
यूँही निभाते जाते हैं.

काश के इनको पूजने वाला
इंसान भी कभी इनको
समझ पाता और
एक दूसरे का मुश्किलों
में हाथ थाम पाता.

-- नीरज

2 टिप्‍पणियां:

आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.