रविवार, दिसंबर 27, 2009
काश के चाँद मेरी शर्ट का बटन होता
काश के चाँद मेरी शर्ट का बटन होता, मैं रो़ज़ उससे तोड़ता तू रोज़ उसे सीती,
यूँही सिलसिला सालों चलता, ये अमावस यूँही इतनी लम्बी न हुई होती....
मखमली पंखुडी गुलाब की गर पलकों पे न सजी होती तेरे,
नज़रें हमसे भी किसी रोज़ टकराई होतीं यूँ काटों में न फंसी होती.
झुरमुट में कहीं एक पत्ते पे पड़ी ओस की बूँद से लब तेरे थर-थराते हैं,
मुस्कुराती तू अगर तो ओस की बूँद मेरे लबों को छूके गुज़री होती.
गुलशन में हजारों के बीच तू अध्खिले गुलाब सी मिली थी तब,
होती तू अगर, ज़िन्दगी मेरी मेह्कार-ए-गुलिस्तान बन महकी होती.
आंचल से तेरे ऊंघते, झांकते, जगमगाते सितारे सभी,
आते कभी ज़मी पर मेरी तो इस आशियाने में भी रौशनी होती.
--नीरज
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अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंBahut bahut shukriya sir.... :)
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति जज्बातों की
जवाब देंहटाएंसराहने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया अजय जी.... :)
जवाब देंहटाएंआते रहियेगा. :)
kya baat hai neenu.....chand ka button.....uspe black holes ke ched aur comet ki pooch ka dhaga banao aur sil lo apne shirt pe aur khush ho jao...kya soch hai...
जवाब देंहटाएंjo bhi hai acchi hai appki kavita...
अच्छा लिखा है आपने शुक्रिया
जवाब देंहटाएंwaaaahh waaaahh waaaaahh ! bahaut badhiya ......
जवाब देंहटाएंhar ek aasahar bahut bahut sunder hai
@Mou, Ranjana ji aur Vandana -
जवाब देंहटाएंAap sabhi ka bahut bahut shukriya yahan aane ka aur meri kriti ko sarahne ka. :)