मंगलवार, दिसंबर 01, 2009
क्या हुआ गर ला इलाज हूँ,
गुज़रा है ज़माना इस बंद कमरे में
टूटे हैं पंख मेरे फड-फाड़ा के बंद कमरे मे.
क्या हुआ गर ला इलाज हूँ,
स्वप्न नहीं रुके हैं मेरे इस बंद कमरे मे.
सींचता हूँ रूह अपनी अनगिनत उन यादों से
शब् टपकती है कमल पे डब-डबती उन यादों से.
क्या हुआ गर ला इलाज हूँ,
यादें छीन नहीं सकते तुम मेरी यादों से.
एक भूल तुम्हे दुनिया से काट सकती है दोस्त
सिर्फ सुरक्षा ही रक्षा कर सकती है दोस्त.
क्या हुआ गर ला इलाज हूँ,
मेरी थोड़ी सी जानकारी ज़िन्दगी बचा सकती है दोस्त.
सिर्फ आज एड्स दिवस पर ही नहीं बल्कि जब मौका मिले सन्देश फैलाएं....एड्स फैलने से बचाएँ.....
--नीरज
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अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंविश्व एडस दिवस पर जागरुकता फैलाने की दरकार है.
हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
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