मंगलवार, अगस्त 10, 2010

लाल भारत



खूब उड़ा है लाल गुलाल,
रंग हुआ है देश का लाल.
मन मानी भाई करी है सबने,
कौन बना है देश का लाल??

लालगढ़ के लाल हैं लाल,
बरफ भी हुई है फिर से लाल.
परवाह है भाई तुमको किसकी,
लगा के घूमो बत्ती लाल.

डुबा-डुबा के डुबा दिया है,
खेल भी कर दिये तुमने लाल.
फिर भी शर्म से भैया तोरे,
नहीं हैं बिलकुल लाल ये गाल.

बढ़ा बढ़ा के बढ़ा दिया है,
महंगाई ने किया बवाल.
इच्छा है भाई सबकी अब ये,
तुम पे ठोकें जम के ताल.


जाने कैसे सुनोगे तुम ये,
कैसे होगी पतली खाल??

--नीरज

4 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

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  2. kam sabdo me sunder baat kahi hai is rachna me ..nice one neer :)

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आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.