रविवार, जून 07, 2009

गाँव और मैं

आसमान मेरा कुछ मटमैला सा हो गया है,
चाँद तारे कृत्रिम जगमगाहट की सिलवटों में खो गए।
पेड़ की छाँव, वो कुएं का पानी,
AC और refrigerator की चाह में बह गए।

सोंधी बारिश की वो खुशबू अब कहीं आती नहीं,
concrete की मंजिलों में लुप्त हो कर रह गया हूँ।
गाय का वो दूध ताजा अब कहीं मिलता नहीं,
थैली के दूषित दूध पर आश्रित हो कर रह गया हूँ।

खेत की ताज़ी सब्जी का स्वाद भी अब जाता रहा,
बासी सब्जी में ही अब मज़ा मुझ को आता रहा।
चूल्हे की रोटी का स्वाद, दाल में मिट्टी की खुशबू,
खो गया है सब जहान से, याद कर दिल भिगोता रहा।

--नीरज

1 टिप्पणी:

  1. oooh neeraj m short of word ......sacchi man ek dam dil bhar aaya hai or apne gaav ki yaad aa gayee hai ......i hav no compliment on it ..........just toucheble

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