रविवार, जून 07, 2009

ए लाल मेरे

Ek gaaon mein rehne wali maa ki bhaavnaaon ka chitran karne ki koshish ki hai jab wo gareebi aur gaaon mein sookhe aur aakal ki stithi mein apne bacche ko doodh nahin pilaa paati aur shishu ko apni god mein le kar bheegi hui aankhon se bas nihaar rahi hai aur usko apne dil ki vyatha samjhaane ki koshish kar rahi hai.



क्या पिलाऊं मैं तुझे ए लाल मेरे,
दूध मेरा तू पी चुका है,
और दूध में क्या कर बनाऊं?

भूख तेरी कैसे मिटाऊं ए लाल मेरे,
अन्न ख़त्म हो चुका है,
और दूध में क्या कर बनाऊं?

आसमान फटता नहीं ए लाल मेरे,
नीर सारा सूख चुका है,
और दूध में क्या कर बनाऊं?

अश्रु पीले तू मेरे ए लाल मेरे,
ये भी काफी बह चुका है,
और दूध में क्या कर बनाऊं?

यूँ न मुझ को छोड़ अधूरा ए लाल मेरे,
5 की आहुति से देह मेरा जल चुका है,
और एक कफ़न मैं क्या कर सिलाऊं?
और दूध में क्या कर बनाऊं लाल मेरे?

--नीरज

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