आग को बाहों में थामे दूर
आकाश में उड़ रही थी रुई,
मुसाफिरों का कौतूहल
उड़ा रहा था धुल का गुबार,
गुन-गुनाते उड़े आ रहे थे आशियाने
में अपने वापिस मुसाफिर.
तो कहीं डाली पे बैठ कर
फिजा खिल-खिला रही थी,
चलो चलें हम भी कुछ
गीत गा लें, मुस्कुरा लें.
दिन का रात से मिलने
का समय हो गया है.
--नीरज
वाह! बहुत खूब!
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हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
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अनेक शुभकामनाएँ.
woww ..awesom ...sunadar hai bahut ye najm :):) musafiro ka lotna ..waw:)
जवाब देंहटाएं@Tashtari ji - Bahut bahut shukriya.... :)
जवाब देंहटाएं@Vandana - Dhanyavaad madam.... :D
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति.....बधाई
जवाब देंहटाएंvery nice... good keep it up ..
जवाब देंहटाएं@Jini -
जवाब देंहटाएंThanx alot... :)
waah! koi shaam aise bayan hoti hai... aaj pata chala...hamko to prakriti ko lekar likha gaya koi bhi chitran bhata hai .....khoobsoorat khyaal
जवाब देंहटाएं@Priyanka - Bahut bahut shukriya. :)
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