गुरुवार, जून 11, 2009

मुशायरा

स्याह रात में चिराग जलाए बैठे हैं,
इंतज़ार में उनके दिल बहलाए बैठे हैं.

आँखों के मैय्कदे अब बंद नहीं होते,
यादों के पैमाने गालों पे संजोए बैठे हैं.

हर एक सितारे में तुझे ढूँढा है मैंने,
जो मिली तो पलकों में छुपाए बैठे हैं.

तेरी एक गुलाब सी ख़ुशी की खातिर,
अब तक काँटा दिल में चुभाए बैठे हैं.

मेरे मैय्कदे के चिराग मद्धम हो चले,
बस उनकी दीद की बातें बनाए बैठे हैं.

तेरी यादों के साए में सर रखके लेटा हूँ,
लोग शमशान में *मुशायरा सजाए बैठे हैं.

गर वो कभी पूछें की क्या हुआ, तो कहना,
"नीर" ठहर गया, लोग भाप उड़ाए बैठे हैं.

शमशान में मुशायरा - अंतिम संस्कार और मुशायरे में कोई ख़ास फर्क नहीं होता, दोनों में लोग आते हैं, मंच पर उपस्थित कवी की कविता के पूर्ण होने पर उसकी बातें करते हैं, तालियाँ बजाते हैं, घर जाते हैं और भूल जाते हैं.

--नीरज

3 टिप्‍पणियां:

आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.