आशकार करो चाहे जितना,
अफ़कार मिटा दो चाहे जितना.
मुंतज़िर बैठे हैं राहों में तेरी,
अलहदा करदो चाहे जितना।
रम्ज़-शिनास थे तुम हमारे,
ग़म-गुसार थे तुम हमारे.
क्या हुआ जो चल दिए यूँ,
रकीब तो न थे तुम हमारे?
गुल तो यूँ रोज़ मिलते हैं,
ख़ार बस किस्मत से मिलते हैं.
दामन थाम ले जो तेरा कभी,
ऐसे गुल बता कहाँ मिलते हैं?
पिलाने वाले तो बहुत आयेंगे,
नज़रों के साकी फिर आयेंगे.
रह जाओगे तकते हमे तुम,
जानिब हम तुम्हारे फिर न आयेंगे.
--नीरज
अफ़कार = Thoughts
आशकार = Zaahir
मुंतज़िर = intzar karne wala
अलहदा = Alag
रम्ज़-शिनास = One who understands hint, intimate friend
ग़म-गुसार = Comforter
रकीब = Rival
गुल = phool
ख़ार = kaanta, thorn
गुल तो यूँ रोज़ मिलते हैं,
जवाब देंहटाएंख़ार बस किस्मत से मिलते हैं.
दामन थाम ले जो तेरा कभी,
ऐसे गुल बता कहाँ मिलते हैं?
बहुत खूब लिखा है...
waaaaah bahut khoob neeraj
जवाब देंहटाएंi must say ki tumhari hindi vocabulary dekhkar nahi lagta ki tum sirf hoby ke liye likhte ho
i mean tumhe to profesnal kavi hona chahiye ..
hatts off 4 this..realy awesom
wonderful neer
जवाब देंहटाएंShukriya Archana ji, vandana aur deep aap sabhi ka.... :)
जवाब देंहटाएं