बुधवार, अगस्त 19, 2009

आखरी जाम हो तो कुछ ऐसा हो....




हर एक सांस हर पल कम हो रही है,
ज़िन्दगी मैकदे में जाम बन रही है.

न कोई गम हो, न गिला, न शिकवा कोई
दोस्त हों आघोष में मेरे, न हो दुश्मन कोई
शिकन न हो चेहरे पे मेरे, न हो खौफ कोई
न शिकायत हो किसी से, न उधारी कोई
तमन्नाएँ अधूरी न रह जाएँ कोई
सिसकियाँ न हों मेरे जाने पे कोई
मोहब्बत के तमगे लगे हों कफ़न पे मेरे,
ज़िन्दगी का आखरी जाम हो तो कुछ ऐसा हो....

--नीरज

3 टिप्‍पणियां:

आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.