शनिवार, सितंबर 05, 2009

दो बहनें

काश के एक रोज़ यूँ
ही तू मुझे मिली होती,
रख लेता तुझे संभाल के
सहेज के, मेह्फूस कर के.

तू न आई अपनी सौतेली
बहन को भेज दिया.
वो जब-जब आई मैंने
दरवाज़ा नहीं खोला,
सदा तेरा ही इंतज़ार किया.
और एक रोज़ खुद ही
उसको बुला लिया.

मुझे क्या पता था की
उसके आने पर ही तू आएगी,
तेरी पायजेब की आवाज़
कानों में जब गूंझी तब तक
देर हो चुकी थी.
तेरी सौतेली बहन
मुझ पे हावी हो चुकी थी.

हर रिस्ता कतरा कलाई से
खून का किस्मत को रो रहा था.
तू चौखट के उस पार थी,
मैं चौखट के इस पार सो रहा था....

सोचा था तेरी सौतेली बहन "मौत"
के साथ तू भी मिल जायेगी,
पर ए "ख़ुशी" तू उस दिन भी
चौखट के पार ही रह गयी,
और मैं चौखट के इस पार ही सो गया....


--नीरज

5 टिप्‍पणियां:

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