बुधवार, सितंबर 09, 2009

मैं हिन्दुस्तानी.

फिर दंगे हो रहे हैं,
हर जगह लड़ मर रहे हैं.
minority का majority से मुकाबला है
जिस के कम सिर काटेंगे कल उसकी सरकार बनेगी
हारने वाले की फिर 5 साल बाद इस सरकार को ज़रुरत पड़ेगी.

हर जगह दुकाने जल रहीं हैं,
लाशें नंगी तड़प रहीं हैं,
बच्चों, औरतों तक को नहीं छोडा,
हर तरफ जिंदगियां बिफर रही हैं.

हल चलता किसान आज Rs.500 के खातिर
तलवार भाँज रहा है,
घोर कलयुग आ गया है फसल की जगह सर काट रहा है,
कसूर उस बिचारे का भी नहीं है,
सियासत प्यास है ऐसी जिसकी तृप्ति लहू के बसकी भी बात नहीं है.

न जाने कब ये मुल्क जागेगा
कब "इकबाल" की बात को जानेगा
कब अपने आपको कश्मीरी, मद्रासी,
मराठी के ऊपर 'हिन्दुस्तानी' मानेगा

जिससे पूछो वो येही बतलाता है
मैं मराठी, मैं गुजरती, मैं राजस्थानी
कितने हैं आप में जो कहते हैं
"मैं हिन्दुस्तानी".

जब बनाने वाले ने
तुझे बनाने में भेद भाव नहीं किया.
तो हे प्राणी तूने उस के नाम मात्र पे
भेद भाव क्यों किया?

तेरे इष्ट ने कहाँ पढाया
तुझे ये पाठ ज़रा बता,
खून की होली खेल,
घर रोशन करना कहाँ से सीखा मुझे बता?

--नीरज

5 टिप्‍पणियां:

  1. कब तक कहते रहोगे हम बंगाली पंजाबी मदारासी हैं
    कब कहना सीखोगे हम सब भारत वासी हैं
    आज के संदर्भ मे एक सटीक रचना शुभकामनायें

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  2. bharat me ye kya ho raha hai baboo,sarkar ke to kuchh bhee nahin aa raha kaboo.narayan narayan

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  3. Sahi kaha naarad ji....na jaane kya ho gaya hai is desh ko aur na jaane kis ore jaayega ye desh aisi baaton ke saath.

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  4. बेनामी10/09/2009 06:08:00 pm

    kitab ke panno ko palat kar sochata hu u palat jaaye zindagi to kya baat ho,
    kyabo me roz aate hai jo haqeekat me aaye to kya baat ho.....

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