शनिवार, मई 08, 2010

कश्ती

ख़्वाबों की एक कश्ती है,
जो पलकों की वादी के पार
रोज़ चली आती है.
कभी सतरंगी ख्वाब लाती है
कभी बेरंगी ख्वाब सजा लाती है.

--नीरज

5 टिप्‍पणियां:

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