सोमवार, जनवरी 18, 2010

ऐ दुनिया तेरे कितने रंग ...



 

यह मेरी और मेरी मित्र वंदना की सांझी नज़्म है....




सच होता निलाम देखूं ...या झूठ के लगते दाम देखूं
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखू

धर्म पे लगते बाजार देखूं ,संक्रमण सा फैला भ्रस्टाचार देखूं
लहराती फसल देखूं या देश में उगती खरपतवार देखूं.
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं

त्यौहारों के सजे पंडाल देखूं, हर गली में मचा हाहाकार देखूं
ललाट पे सजता सिन्दूर देखूं या खून सने हाथ लाल देखूं.
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं
.
नन्हे हाथों में औजार देखूं, गंगन चुम्बी मीनार देखूं
देश का विकास देखूं या भविष्य की ढहती दीवार देखूं
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं

बुराई के चक्रव्यू में फसां खुद को अभिमन्यु सा लाचार देखूं .
कोरव सी सेना पर इतराऊं या अंधे की सरकार देखूं
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं

सच को होता निलाम देखूं ..या झूठ के लगते दाम देखू
ऐ दुनिया तेरे कितने रंग मैं क्या देखूं क्या न देखूं


--नीरज & वंदना 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छे , क्या देखूं क्या न देखूं , मन तो सूक्ष्मतर बात पकड़ लेता है |

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  2. आज के हालात पर बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति......

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  3. समाज का आईना है ये रचना .......... बहुत खूब .......

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