इक अकेली शाम से कुछ पल तेरे,
अपने लिए चुन लिए थे मैंने,
उस आधे घंटे की मुलाकात में
कई ख्वाब बुन लिए थे मैंने.
कजरारी आखों से तेरी कुछ
सुनहरे पल समेट लिए थे मैंने.
थर-थराते गुलाबी लबों से तेरे,
बिखरते लफ्ज़ चुन लिए थे मैंने.
गालों पे फैलती-सिमटती लाली को,
सहेज के दिल के पन्नों में रख लिए थे मैंने.
तेरे जुल्फों को संभालते पलों को,
इस शाम की माला में पिरो लिए थे मैंने.
इस शाम के गुज़रे पलों को मैंने,
सहेज कर, शाम की माला में पिरो के
याद की मेज़ पर रख लिया है.
न जाने ये शाम कभी लौटे न लौटे.......
--नीरज
bahut khoobsurati se sahaeji hain yaaden....badhai
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण...उम्दा रचना!!
जवाब देंहटाएंaweeeeeeeeeesssssom !!! bahut sunder najm hui hai.....:)
जवाब देंहटाएं@Maasi Ji -
जवाब देंहटाएंShukriya.... :)
@Sanjay Ji -
जवाब देंहटाएंBahut bahut dhanyavaad sarahne ke liye aur aane ke liye.... :)
Aate rahiye ga... :)
@Udan Tashtari -
जवाब देंहटाएंShukriya sir.... :)
@Vandana -
जवाब देंहटाएंThanx re.... :)
kabhi kabhi choti si mulakaat kavita ban jati hai
जवाब देंहटाएं@Dimple Ji -
जवाब देंहटाएंAur kavita zindagi...
Aane ke liye shukiriya... :)
कुछ ऐसे हसीन लम्हे सॅंजो कर रखने के लिए होते हैं ..........
जवाब देंहटाएं@Digambar Ji -
जवाब देंहटाएंAane aur saraahne ke liye bahut bahut dhanyavaad.... Aate rahiye ga.... :)
कितना बेबस होगा वो हर पल जब कोई अपने पुरे परिवार को अपने लिए हर पल मरते देखता हो
जवाब देंहटाएंऔर मरने से मिली आज़ादी ..............
निशब्द हूँ क्या कहूँ
आपकी लेखनी दिल को गहरे तक झकझोरती चली गई
very nice love it..
जवाब देंहटाएंNow I got it Sir ji.. :D
जवाब देंहटाएं