मंगलवार, जनवरी 12, 2010

पल





इक अकेली शाम से कुछ पल तेरे,
अपने लिए चुन लिए थे मैंने,
उस आधे घंटे की मुलाकात में
कई ख्वाब बुन लिए थे मैंने.

कजरारी आखों से तेरी कुछ
सुनहरे पल समेट लिए थे मैंने.
थर-थराते गुलाबी लबों से तेरे,
बिखरते लफ्ज़ चुन लिए थे मैंने.

गालों पे फैलती-सिमटती लाली को,
सहेज के दिल के पन्नों में रख लिए थे मैंने.
तेरे जुल्फों को संभालते पलों को,
इस शाम की माला में पिरो लिए थे मैंने.

इस शाम के गुज़रे पलों को मैंने,
सहेज कर, शाम की माला में पिरो के
याद की मेज़ पर रख लिया है.
न जाने ये शाम कभी लौटे न लौटे.......

--नीरज

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत भावपूर्ण...उम्दा रचना!!

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  2. aweeeeeeeeeesssssom !!! bahut sunder najm hui hai.....:)

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  3. @Sanjay Ji -

    Bahut bahut dhanyavaad sarahne ke liye aur aane ke liye.... :)
    Aate rahiye ga... :)

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  4. @Dimple Ji -

    Aur kavita zindagi...

    Aane ke liye shukiriya... :)

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  5. कुछ ऐसे हसीन लम्हे सॅंजो कर रखने के लिए होते हैं ..........

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  6. @Digambar Ji -

    Aane aur saraahne ke liye bahut bahut dhanyavaad.... Aate rahiye ga.... :)

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  7. कितना बेबस होगा वो हर पल जब कोई अपने पुरे परिवार को अपने लिए हर पल मरते देखता हो
    और मरने से मिली आज़ादी ..............
    निशब्द हूँ क्या कहूँ
    आपकी लेखनी दिल को गहरे तक झकझोरती चली गई

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आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.