दिन के उजाले की ललक
का दीवाना इंसान
स्याह रात के जुगनू
नहीं पहचान पाता.
खो देता है उस क्षण को
और चार दीवारी में दिन
नहीं पहचान पाता.
सीप में छुपे मोती खोजता है
आँखों के सागर में छुपे
मोती नहीं पहचान पाता.
खोखली हंसी पे जीता है
अपने ही सीने में उमड़ता
दर्द नहीं पहचान पाता.
आकाश से टूटते सितारे देखता है
दिल से जुदा होते रिश्ते
नहीं पहचान पाता.
यही जीव उस शक्ति ने उपजा था
जो अब अपने आप को
नहीं पहचान पाता.
--नीरज
wah bahut khoob
जवाब देंहटाएंApne hi seene mein - Beautiful!!!
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