लिखता हूँ तेरा नाम फिर मिटा देता हूँ,
लोग पूछते हैं तू कुछ लिखता क्यूँ नहीं?
मोहब्बत से बढ़कर क्या है ज़िन्दगी में,
लोग पूछते हैं तू कुछ करता क्यूँ नहीं?
तेरे ख़त के पुर्जे हैं दिल में दफन,
लोग पूछते हैं तू कुछ पढता क्यूँ नहीं?
तूने अंदाज़-ए-गुफ्तगू निगाहों से सिखाया,
लोग पूछते हैं नज़रें उठता क्यूँ नहीं?
आशिक फ़कीर से क्यों होते हैं अक्सर,
लोग पूछते हैं तू मांगता क्यूँ नहीं?
मैं को "मै" में डूबा गयी थी,
लोग पूछते हैं पैमाना थमता क्यूँ नहीं?
--नीरज
wah wah ... bahut khoob
जवाब देंहटाएंSarahne ke liye bahut bahut shukriya. :)
जवाब देंहटाएंnamaskar mitr,
जवाब देंहटाएंaapki kavitayen padhi , sab ki sab behatreen hai .. aapki kavitao me jo bhaav hai ,wo bahut hi gahre hai ..
aapko badhai .. pyaar ke upar likhi gayi ye kavita acchi lagi ..
dhanywad.
meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
aapka
Vijay