जाने क्यों इम्तहान होता है,
साल भर मस्ती और अंत में
ये जन-जाल होता है.
दिन रात बस सिलवटों का डेरा,
आँखों के नीचे अँधेरा होता है.
दुनिया घूमने जाती है, ख़ुशी मनाती है
और ये दिल, मायूस किताबों में होता है.
एक सवाल बचपन से जारी है,
इम्तहान से पहले क्यों पेट को होती बीमारी है.
घर वाले सब हंसते हैं,
क्यों चुना इस विषय विशेष को
हम ये सोच सोच कर रोते हैं.
कल इम्तहान है और आज Tension से,
keyboard से कवितायेँ झड़ रहीं हैं.
न जाने कल इम्तहान में क्या झडेंगे,
पता चला वहां भी कवितायें झड़ रहीं हैं.
किताबों ने भी जवाब दे दिया है,
कहतीं हैं बेटा तुझे दवा की नहीं
है ज़रुरत अब तो दुआ ही तेरी,
आखरी उम्मीद रह गयी है.....
--नीरज
is savaal ka javab agar apko mil jaye
जवाब देंहटाएंis muskil se nijaat agar mil jaaye
....to krpya mujhe jaroor bataiyega
maja aa gaya.....bahut khub.....
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